हर बारह साल में क्यों होता है कुंभ जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से क्या है इसका रहस्य
डॉ सुमित्रा अग्रवाल
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
कोलकाता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत का कलश (कुंभ) निकला। अमृत प्राप्त करने के लिए देवता और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान, भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके अमृत को देवताओं को बांटना चाहा।
जब असुरों ने अमृत कलश को छीनने की कोशिश की, तो उसे लेकर देवता और असुर १२ दिव्य दिनों तक भागे। इस दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं:
प्रयागराज (इलाहाबाद) – गंगा, यमुना, और सरस्वती के संगम पर।
हरिद्वार – गंगा नदी के किनारे।
उज्जैन – क्षिप्रा नदी के तट पर।
नासिक – गोदावरी नदी के किनारे।
चूंकि देवताओं के १२ दिव्य दिन पृथ्वी के १२ वर्षों के बराबर होते हैं, इसलिए हर १२ वर्षों में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
कुंभ के ज्योतिषीय आधार:
कुंभ मेले की तिथियां ग्रहों की विशेष स्थितियों पर आधारित होती हैं।
जब गुरु (बृहस्पति) और सूर्य की स्थिति विशेष राशियों (जैसे कुंभ, मेष, सिंह, आदि) में होती है, तब यह पर्व आयोजित होता है।
कथा का आध्यात्मिक महत्व:
यह कथा इस बात को दर्शाती है कि अमृत रूपी ज्ञान या मोक्ष प्राप्त करना संघर्षपूर्ण है और इसके लिए तपस्या और समर्पण की आवश्यकता है।
कुंभ मेले में स्नान को अमृत स्नान की तरह माना गया है, जो आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम है।