टीबी उन्मूलन केंद्र को मिला अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन, पंचायती स्तर पर कैम्प लगाकर किया जाएगा टीबी मरीजों की पहचान

टीबी उन्मूलन केंद्र को मिला अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन

  • ग्रामीण स्तर पर कैंप लगाकर होगी टीबी की जांच
  • पोर्टेबल एक्स-रे को मोबाइल उपकरण के रूप में किया जाएगा उपयोग
  • आधुनिक तकनीक से बनाई गई है मशीन
  • पंचायती स्तर पर कैम्प लगाकर किया जाएगा टीबी मरीजों की पहचान

पूर्णिया

टीबी उन्मूलन के लिए वर्ष 2025 का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसको लेकर विभाग द्वारा तथा सहयोगी संस्था के द्वारा तमाम तरह के प्रयास किया जा रहा है इसी संदर्भ में पूर्णिया जिले के टीबी उन्मूलन केंद्र को 1 अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन दी गई है। मशीन के संचालन को लेकर सी-19 परियोजना के तहत अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन का दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल के एएनएम स्कूल में किया गया। प्रशिक्षण में जिला के चार प्रखंड कसबा, डगरुआ, भवानीपुर और बनबनखी के एक्सरे टेकनीशियन को और वर्ल्ड विज़न सी-19 प्रोजेक्ट के कर्मियों को टीबी मरीजों की पहचान करने की जानकारी दी गई। प्रशिक्षण में पटना से लैब इंडिया हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के टेक्नीकल इंजीनियर नीतीश मिश्रा व डब्लू जे क्विलंटन फाउंडेशन के पदाधिकारी अमरजीत प्रभाकर द्वारा उपस्थित लोगों को एक्सरे मशीन के उपयोग करते हुए टीबी मरीजों को सुनिश्चित समय में पहचानने की सभी आवश्यक जानकारी दी गई। इस दौरान सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी, जिला संचारी रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. मिहिरकान्त झा, डीपीएस राजेश कुमार, वर्ल्ड विज़न इंडिया से एमएनई अफसर सुशांत कृष्ण झा, जिला समन्यवक अभय कुमार श्रीवास्तव, जिला पर्यवेक्षक अजय अकेला, एक्सरे टेक्नीशियन सुजीत कुमार, कम्युनिटी कोऑर्डिनेटर अभिनाश कुमार झा, एलटीबीआई कोऑर्डिनेटर कमल कुमार पासवान एवं दिनेश कुमार सिन्हा के साथ सभी चार प्रखंडों के एक्सरे टेक्नीशियन उपस्थित रहे

ग्रामीण स्तर पर कैंप लगाकर होगी टीबी की जांच

जिला संचारी रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मिहिरकान्त झा ने बताया की अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन केंद्रीय यक्ष्मा प्रभाग, दिल्ली से प्राप्त हुआ है, जिसका संचालन एबं क्रियान्वन डब्लू जे क्विलंटन फाउंडेशन के सहयोग से वर्ल्ड विजन के द्वारा किया जायेगा। उन्होंने इस मशीन की विशेषता बताते हुए कहा की यह एक्स-रे मशीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस होगा, इसके सहयोग से वैसे लोगो को टीबी की पहचान करने में आसानी होगा जो अस्पताल तक नहीं आ पाते। गांव स्तर पर कैम्प लगाकर टीबी स्क्रीनिंग कर उसी स्थान पर अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन के द्वारा एक्सरे किया जायेगा। ये मशीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा तुरंत रिपोर्ट दे देगा जिससे कि टीबी रोगी की जल्द पहचान कर उनका जल्द इलाज शुरू किया जा सके। उन्होंने बताया मशीन के आ जाने से टीबी मरीज को ससमय चिन्हित कर जल्द से जल्द उपचार करने में सहुलियत होगी जो टीबी मुक्त भारत के लिए मिल का पत्थर साबित होगा।

पोर्टेबल एक्स-रे को मोबाइल उपकरण के रूप में किया जाएगा उपयोग

सीनियर एनलिस्ट, क्लिंटन फाउंडेशन अमरजीत प्रभाकर ने बताया की पोर्टेबल एक्स-रे को मोबाइल उपकरण माना जाता है क्योंकि इसे अस्पताल के साथ विभिन्न स्थानों पर ले जाने में सक्षम होता है। ये एक बैटरी द्वारा आपूर्ति की गई इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा संचालित होती है जो रेडियोग्राफर द्वारा कम प्रयास के साथ मोबाइल यूनिट चलाने की गति में सहायता करता है। मोबाइल एक्स-रे सिस्टम का उपयोग अक्सर उन रोगियों की छाती की रेडियोग्राफी करने के लिए किया जाता है जिन्हें रेडियोलॉजी विभाग में नहीं ले जाया जा सकता है। जैसे, एक मोबाइल एक्स-रे उपकरण को ऐसी अनूठी विशेषताओं के साथ डिज़ाइन किया गया है जिसे कि सीमित स्थानों में भी ले जाया जा सके। इसके उपयोग से किसी भी क्षेत्र में टीबी मरीजों की पहचान आसानी से हो सकता है।

आधुनिक तकनीक से बनाई गई है मशीन
लबिन्दा हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के सीनियर इंजिनियर नितेश मिश्रा ने बताया मशीन आधुनिक तकनीक से बनाई गई है। यह एक्स-रे मोबाइल सिस्टम में एक मोटर चालित ड्राइव, कॉम्पैक्ट व्हीलबेस है जिसमें जनरेटर, एक पोजिशनिंग कॉलम से जुड़ी एक एक्स-रे ट्यूब और एक एक्सपोज़र कंट्रोल पैनल शामिल होता है। इस प्रणाली के भाग के रूप में छवि रिसेप्टर छवि गुणवत्ता और एक्सपोज़र सुरक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के डिटेक्टरों जैसे डिजिटल रेडियोग्राफी (डीआर) या कंप्यूटेड रेडियोग्राफी (सीआर) सिस्टम का उपयोग किया जा सकता है। डीआर सिस्टम में कम खुराक पर जांच करने की क्षमता होती है, वे सीआर सिस्टम की तुलना में उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन, छवि गुणवत्ता, घाव-संकेत प्रतिक्रिया और एक विस्तृत गतिशील डिस्प्ले रेंज प्रस्तुत करते हैं। जब दोनों प्रणालियों की तुलना की जाती है तो डीआर सिस्टम का वर्कफ़्लो भी बेहतर होता है।

पंचायती स्तर पर कैम्प लगाकर किया जाएगा टीबी मरीजों की पहचान

सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग टीबी की जांच आम तौर से नहीं करवाते हैं। आधुनिक तकनीक की मशीन आने से इसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से हो सकेगा। आधुनिक मशीन में टीबी की जांच शुरू होने पर इसकी रिपोर्ट एक मिनट के भीतर आ जायेगा। इसके लिए कुछ प्रखंडों के लैब टेक्नीशियन को मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। इसके बाद अन्य प्रखंडों के लैब टेक्नीशियन को भी प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके बाद टीबी मरीजों की जांच के लिए पंचायत स्तर पर कैम्प लगाई जाएगी ताकि टीबी मरीजों को आसानी से पहचान करते हुए उनका सही समय पर इलाज किया जा सके।

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